Hawai Jahaj

पढ़िए श्री विवेक भावसार द्वारा भेजी  ‘आपकी चिट्ठी ‘ जो आपको ज़रूर बचपन की सुनहरी यादों की ओर उड़ा ले जायेगी… 

प्यारे हवाई जहाज,

बचपन से तुम्हें आकाश में उड़ते देखा है. ज़ोरों की तुम्हारी आवाज़ जब भी गूंजती थी हम दौड़ कर घर से बाहर आ जाते थे और आसमान में तुम्हारी एक झलक देखकर खुश और सम्मोहित हो जाते थे. हवाई जहाज में सवारी का सपना तो बहुत दूर, तुम्हें नज़दीक से देखना भी हमारे लिए एक बड़ी बात होती थी.

मुझे याद है जब भी बिजासन मंदिर की टेकरी पर जाते थे, तुम्हें हवाई पट्टी से उड़ान भरते या उतरते देखने के लिए घंटों इंतज़ार करा करते थे. उन दिनों तुम आते भी तो कितनी कम बार थे!

खैर, तुम्हारा साथ पाने की चाहत हम कागज़ के विमान बनाकर पूरी कर लेते थे. गली के हम छोटे-छोटे बच्चे आपस में होड़ भी लगाते कि कौन कागज़ से सबसे खूबसूरत हवाई जहाज बनाता है. इस चक्कर में कॉपी के न जाने कितने पन्ने ‘हवाई जहाज ओरिगामी’ की भेंट चढ़ गए. इन्हें बना लेने के बाद एक ख़ास तरीके की रेस भी लगती थी कि किसका हवाई जहाज ऊँचे से ऊँचे जाकर सबसे ज्यादा देर तक उड़ान भरता है. ऐसे उड़ान चैंपियन से हवाई जहाज बनाने-उड़ाने की ख़ास टेक्नीक जानने के लिए अपनी मक्खनबाजी की ख़ास टेक्नीक लगाया करते थे. फिर उसके निर्देशन में निर्माण और उड़ान का कार्यक्रम चलता था.

स्कूल के बस्ते  में दो-चार हवाई जहाज होना ज़रूरी था. मास्टरजी जब कक्षा से बाहर गए हों तो ये जहाज बैग से बाहर निकलकर अपने करतब

दिखाते थे. इसी का एक तेज़-तर्रार वर्ज़न भी हुआ करता था जिसे ‘रॉकेट’ की उपमा दी गई थी. गति में वो ‘रॉकेट’ की तरह ही था और बोरियत भरी कक्षाओं में अक्सर अंतिम बेंच से पहली बेंच की ओर उड़ान भरता था.

अब जबकि सचमुच के हवाई जहाज की यात्रा करने का सौभाग्य भी मिला है, लेकिन बचपन का वो कागज़ वाला हवाई जहाज, स्मृति कोष में आज भी जगह बनाए हुए है.

 

Images courtesy,

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