Galli Cricket – 1

galli cricket 1-2

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प्यारे गल्ली क्रिकेट,

दीवानगी…मस्ती…जोश…जुनून…आईपीएल जितने रोमांचकारी और वर्ल्ड कप जितने कॉम्पिटिटिव हुआ करते थे तुम…या उससे भी ज़्यादा!

दोपहर सरकी नहीं कि बच्चों का झुण्ड, जिनमें लड़कियाँ भी शामिल होती थीं, साजो-सामान लेकर गली में उतर आता था. लॉर्ड्स से क्या कुछ कम होता था वह ग्राउंड! आस-पास के घर, आती-जाती गाड़ियाँ, ओटले पर खांसते दादाजी, सब्ज़ी काटती काकी…सब उसका हिस्सा होते थे.

तुम्हारी किट भी निराली होती थी. दो बैट, जिनमें एक खेलने लायक होता था और दूसरा नॉन-स्ट्राइकर के काम आता था. दूसरा बैट नहीं? कोई बात नहीं…लकड़ी, मोगरी, पाइप, कार के सायलेंसर से भी काम चल जाएगा. द गेम मस्ट गो ऑन.

गेंद प्लास्टिक, रबर, टेनिस जैसे मटेरियल की होती थी और स्टंप दीवार पर कोयले, चाक या पत्थर से घीस-घीस कर बनाते थे. कई बार तो वो दीवार टूट जाती थी पर निशान नहीं मिटते थे. दीवार न होने पर टायर, कुर्सी, पटिया, स्कूल बैग, आड़ी-टेढ़ी डंडियाँ स्टंप बन जाती थीं. बोलिंग एंड ईंट या पत्थर से बनता था. डेढ़-बैट नापकर, ज़मीन पर वो परफेक्ट क्रीज़ खींचना…याद है न!

इन तैयारियों के बाद सबसे छोटे बच्चे के पीठ पर ‘धाप-धाप-धाप-धाप’ धौल जमाकर नम्बरिंग करते थे या फिर टीम बाँटते थे. पहले सारे पक्के प्लेयर्स बाँट लिए जाते थे, लास्ट में अच्चे-कच्चे. शुरू-शुरू में ही सिलेक्ट हो जाना, कसम से आईपीएल बिडिंग में करोड़ों में जाने की फीलिंग देता था!

टॉस के लिए ‘गिल-सुक’ टेकनीक का उपयोग होता था, जिसमें फ्लैट पत्थर के एक साइड पर थूककर हेड और टेल बनाते थे. कितनी ही बार वो पत्थर खड़ा गिरता, टूट जाता या ऐसी जगह जा घुसता जहाँ से रिज़ल्ट ही न दिखे…

खैर, टॉस के बाद शुरू होता था मैच का रोमांच….

क्रमश:

 

 

Image courtesy for the entire series of galli cricket,

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