प्यारी ऑडियो कैसेट,
तुमसे हमारी कितनी सारी म्यूज़िकल यादें जुड़ी हुई हैं. टेप में खुद उल्टा लगकर सीधे, सच्चे गीत सुनाती थीं तुम!
नई फिल्म रिलीज़ हुई नहीं कि उसकी कैसेट खरीदने की होड़ लग जाती थी. ड्राइंग रूम की अलमारी या रैक में कैसेट कवर, एक के ऊपर एक जमाकर शान से रखे जाते थे. जिसका गठ्ठा जितना बड़ा, वो उतना ही बड़ा संगीत प्रेमी माना जाता था.
उस अलमारी के अंदर की दुनिया बड़ी निराली थी. संगीत के बड़े-बड़े उस्ताद, किशोर-रफ़ी जैसे स्वर सम्राट, लता-आशा जैसी स्वर देवियाँ, शानू दा-उदित नारायण जैसे लोकप्रिय गायक, अनूप जलोटा और चंचल जैसे भजन सम्राट, जगजीत और पंकज उधास जैसे ग़ज़ल फनकार, जॉनी लीवर और केके नायकर जैसे हास्य कलाकार, सब मिल-जुलकर रहा करते थे. सच, संगीत में भेद मिटाने की ताकत होती है. याद आया, मेरे पास तो फिल्मों के डायलाग की भी कैसेट थी.
‘ए’ साइड और ‘बी’ साइड के गाने याद करना, एक साइड पूरी होने पर खटाक से पल्टा लगाना, रील फोड़कर उसमें आवाज़ सुनने की कोशिश करना, रील खिंच जाने पर होल में पेंसिल फँसाकर गोल-गोल घुमाकर उसे ठीक करना, रिकॉर्ड का बटन दबाकर खुद की आवाज़ टेप करना, अपने मनपसंद गानों की कैसेट ‘भरवाने’ के लिए लिस्ट बनाना, मनपसंद गाना रिवाइंड कर-कर बार बार सुनना, झंकार बीट्स, नॉन स्टॉप हिट्स…इन छोटी-छोटी खुशियों को हम सभी ने जीया है, ऑडियो कैसेट की खरखराती आवाज़ से अपने बचपन को संगीतमय किया है.
आज ऑडियो कैसेट नहीं है, न ही उसका साथी टेप रहा है. घरों, रिश्तों और ज़िन्दगी में भी संगीत कम हो गया है. क्या इन दोनों बातों में कोई कनेक्शन है…पूछता मेरे मन का रिवाइंड बटन है!
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1 Comment
Bahut sahi kaha hai….it really have a connection as mentioned in last line