प्यारी अलार्म क्लॉक
स्टील से बनी, गोल आकार की, घनघना कर बजने वाली हो या प्लास्टिक से बनी, चौकोर, टिकी-टिकी टिकी-टिकी कर बजने वाली, अलार्म घड़ी कभी हर घर में हुआ करती थी.
रात में सोने से पहले अलार्म सेट करना और ६ का लगाएँ या सवा ६ का, इसमें डिसाइड न कर पाना भी रोज़ की बात होती थी.
सच कहूँ तो हर बच्चे की तुमसे दुश्मनी हुआ करती थी. सुबह-सुबह, जब नींद का स्वाद सबसे मीठा होता है या कोई सुहाना सपना आँखों में तैर रहा होता है, तुम सारा खेल बिगाड़ देती. सुबह के सन्नाटे में गूंजती तुम्हारी वो कर्कश आवाज़, सिर्फ हमें ही नहीं सारे मोहल्ले को जगा देती थी. चादर मुंह के ऊपर तानकर सोना बेकार, तकिया कान के ऊपर दबाना बेकार, उस आवाज़ से बचने का एक ही रास्ता था कि उठो और घड़ी का बटन दबाओ. और एक बार उठ गए भैया तो समझो दिन के शिकंजे में फंस गए. मन में आता था कि किसी नींद के दुश्मन ने ही इसका आविष्कार किया होगा!
पर जैसे-जैसे बड़े होते गए तुम्हारा महत्व समझ में आता गया. परीक्षा के समय रात २ या ३ बजे पढने के लिए उठना हो तो तुम्हारा ही सहारा होता था. ऑस्ट्रेलिया में होने वाले मैचेस का प्रसारण देखने के लिए भी तुम्हारी ही मदद लेनी पड़ती थी. खुद जाग-जागकर तुमने कितने ही टॉपर्स, कितने ही विनर्स को नींद से उठाया है, उन्नति के रास्ते पर आगे बढ़ाया है. दुनिया की अनेक सफ़लताओं में तुमने भी योगदान दिया है.
वैसे घर में भी एक ऐसा व्यक्ति होता था जो तुम्हारा जीवंत स्वरूप लगता था, माँ. कई बार सेल ख़त्म होने से या कुछ मशीनी खराबी के कारण तुम चूक जातीं, पर माँ कभी अपने कर्त्तव्य से चुकी हो, ऐसा तो कभी याद नहीं आता.
आज तुम्हारी जगह मोबाइल फोन्स ने ले ली है. पर सच कहूँ, वो मीठी, बेफ़िक्र नींदें भी तुम्हारे साथ ही कहीं खो गई हैं…तुम आ जाओ तो शायद वो भी मिल जाएं!
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4 Comments
Sach me befikr ninde kahi kho gai hai….
Thik kaha Tarika ji.Bhagte daudte jeevan mein an sukoon ka nishaan kahan..
nice post…..
thanks for sharing
Thank you Kavita. Do keep visiting for more such posts.