प्यारी स्लेट पट्टी,
दराज़ में कुछ ढूंढते-ढूंढते अचानक तुम हाथ में आ गईं…बचपन की कितनी यादें आँखों में छा गईं. माँ ने अपने कोमल हाथों से मेरा हाथ पकड़कर, अक्षरों का पहला पाठ तुम पर ही तो दिया था…तुम्हारी काली सतह पर मानो ज़िन्दगी भर का उजियारा लिख दिया था.
हिंदी, अंग्रेज़ी, गणित, हर विषय की पढ़ाई तुम पर ही होती थी. तुम्हें सबसे प्यार था – दो लाइन, चार लाइन, चौकोर खानों जैसी नखरीली शर्तें तुम्हारी कहाँ होती थीं.
तुम्हें गीले कपड़े से चमकता साफ़ पोंछना…पंखे के नीचे या बाहर हवा में ‘पट्टी-पट्टी सूख जा’ गाकर सुखाना…तुम्हारी उस दुबली-पतली दोस्त पेम से तुम्हारे दिल पर लिखना…कुछ गलत लिखने पर ऊँगली से मिटा देना (या थूक ही से ठीक कर लेना)…लिखते-लिखते सबकी नज़रें बचाकर थोड़ी सी पेम खा लेना…पकडे जाने पर कैल्शियम की कमी का हवाला देना…किस बच्चे ने ये सब नहीं किया! टिन की छत वाली कक्षाओं में तुमसे पंखे का काम भी लिया है मैंने…कागज़ की छोटी-छोटी गेंदों से तुमसे क्रिकेट भी खेला है मैंने.
मन में सोचा, क्यों ज़रा सा पढ़-लिखकर मैं तुम्हें भूल गया… पर तुम सिखाना नहीं भूलीं…आज भी जब हाथ में आईं तो सीख देने लगीं…कि बीता-पुराना पोंछकर, नए सीरे से ज़िन्दगी लिखने में कभी देर नहीं होती!
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ambergristoday, pslearns, blogger, epochtimes, source, midday
2 Comments
Very touchy Slate-patti. Ek aur kaam jo slate se hota tha jab school me jhagda hota tha to baste ke andear rakhi slate ek hathiyar ki tarah ladai me kaam aati thi aur samne wale ki khaasi achchhi pitai bhi isase ho jaati thi.
Very nice insight anurag 🙂