प्यारे हाथ से बने स्वेटर,
तुम्हारा नाम लेते ही भरी सर्दी में भी एक प्यार भरी गर्माहट दिल पर छा जाती है.
मानता हूँ, दिन भर मॉल से खरीदा ऊँचे ब्रांड का महंगा स्वेटर पहने घूमता हूँ. उसकी चमक लाजवाब है, फिनिशिंग कमाल की और डिजाइन भी मॉडर्न.
पर जैसे ही घर पहुँचता हूँ, उसे निकाल फेंक सबसे पहले हाथ से बना वो स्वेटर ढूंढता हूँ जो भले ही बरसों पुरानी फैशन का है, जिसके ओरिजिनल रंग का पता नहीं, जिसकी ऊन जगह-जगह से उधड रही है, फिटिंग से भी जिसका नाता जाने कब से टूट गया है…पर अहसास ऐसा जैसे किसी ने अपनी बांहों में प्यार से समेट लिया हो.
और क्यों न हो, उसे बनाया भी तो माँ या दादी-नानी में से किसी ने होता है. सरिता, वनिता, गृहशोभा आदि पत्रिकाओं के बुनाई विशेषांकों में से डिजाइन चुन-चुनकर, बार-बार आपका माप लेकर, सिर्फ़ और सिर्फ़ आपके लिए.
दिन-रात चलती उंगलियाँ, छोटे-बड़े नंबर की सुइयां, ऊन के उन रंग-बिरंगे गोलों से, एक फंदा सीधा, एक फंदा उल्टा करते हुए एक ऐसा खूबसूरत चित्र बुन देती थीं कि दिल खुश हो जाता था. और हमारे चेहरे पर खुशी देखकर स्वेटर बनाने वाले की मेहनत सफल हो जाती थी.
कई बार सोचता हूँ कि जब कड़ाके की ठण्ड पड़ती हैं और सारे नए स्वेटर-जैकेट जवाब दे देते हैं, यह हाथ से बना स्वेटर कैसे काम कर जाता है. शायद इनको बनाने वाला, बनाते समय इसमें अपने प्यार और दुलार की गर्माहट भी बुन देता था, और उसके होते बड़ी-बड़ी मुसीबतें हम तक नहीं पहुँच सकतीं, तो फिर ये सर्दी की क्या बिसात है!
देखो तो सिर्फ़ एक स्वेटर है, सोचो तो एक रिश्ता है, उम्र बहुत हो गई है उसकी, पर उसका दिल अब भी सिर्फ मेरे लिए ही धड़कता है…
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Featured image Mayarani Mukherji by Chandana Roy