Ghar Ke Bank

ghar ke bank

 

प्यारे घर के बैंक,

बचपन में एक घर के अंदर कितने छोटे-छोटे बैंक हुआ करते थे. हम जब चाहे उनसे पैसे विदड्रॉ कर लिया करते थे.

माँ की साड़ी के पल्लू के कोने में तो मानो लक्ष्मीजी का वास था. गुब्बारे वाले को अठन्नी देनी हो या चुस्की वाले को रुपया, कभी कोई खाली हाथ नहीं लौटता था.

दादाजी की बनियान की जेब और दादी की कमर पर ओटा हुआ वह कपड़े का गूमड़ भी कम नहीं थे, जब मांगों पैसे उगल देते थे.

शक्कर की बरनी में, दाल-चावल के डिब्बों में, चायपत्ती के मर्तबान में पैसे निकल आते थे. दीवारों पर बने ख़ानों के काग़ज़ों के नीचे, दीवान-पलंग की गद्दी के तले भी अक्सर रुपये मिल जाते थे.

मैंने तो दीवार पर टिकी भगवान की तस्वीरों के पीछे भी पैसे रखे देखे हैं, मानो घर की समृद्धि की रखवाली कर रहे हों.

रोज़मर्रा के खर्चों में से तिनका-तिनका बचाकर बनाए गए तुम छोटे-छोटे बैंक बहुत काम के थे. तुमने कितने ही लेनदारों के तकाज़े दूर किए, हज़ारों इंटरेस्ट फ्री मुस्कानें बाँटी, ज़रुरत के वक़्त अनगिनत लोगों को लोन दिए…और चुपचाप से हमारे जीवन में भी बचत के बीज बो दिए.

तभी तो आज भी जब फिजूलखर्ची के लिए हाथ बढ़ता है, तुम्हारी यादों का फिक्स्ड डिपॉजिट, एक बार तो मन को ज़रूर टोकता है…

 

 

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5 Comments

    1. Thank you so much! It’s our attempt to rekindle those wonderful memories and show the present generation what all they are missing. 🙂

  1. superb thought……ye saari baatein bachpan ki yaad dilata hai….aisa lagta hai ki fir se bachpan ko jeelun…..

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