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टॉस के बाद शुरू होता था मैच का रोमांच. जिसकी बैट उसी की ओपनिंग रहती थी. बैट्समैन लेग स्टंप का गार्ड लेकर, ऑफ स्टंप पर खड़ा होता था. ‘अबे स्टंप तो दिखा’ बॉलर के प्रोटेस्ट करने पर एकाध इंच इधर-उधर होता था.
अंपायर साहब बैटिंग साइड के ही खिलाड़ी होते थे जो ट्रैफिक जवान की मुद्रा में खड़े रहते. ‘राइट आर्म ओवर दी विकेट’ पहले साइड बोली जाती थी, न बोलने पर नो-बॉल का प्रावधान था. ये चलन कहाँ से आया पता नहीं, न ही ट्रायल बॉल का चलन, पर मजाल है इनके बिना गेम शुरू हो जाए!
वन टिप–वन हैंड, एलबीडब्ल्यू की नी है, लास्ट मैन की है, डायरेक्ट बाहर गई आउट, दीवार टच नॉट आउट, स्टंप के पीछे के रन नहीं हैं, गाड़ी के नीचे के दो रन डिक्लेअर हैं, तीन वाइड पर बेबी ओवर या सीधे ओवर डिसमिस…गल्ली क्रिकेट के रूल निराले होते थे. एक खिलाडी कम होने पर बैटिंग साइड से फिल्डर लिया जाता, जो अक्सर कैच छोड़कर अपनी टीम से वफ़ादारी निभाता.
कुछ लोग न खेलकर भी गल्ली क्रिकेट का हिस्सा होते थे. खिड़की से झांकते अंकल जो थर्ड अंपायर का काम कर देते, खडूस आंटी जिनके घर में बॉल गई तो समझो बस गई, मम्मियां जिन्हें मैच के दौरान ही सारे काम याद आते थे, गली की ‘बॉलीवुड स्टार’ जिसके नयन दूर से ही निहारते थे.
सूरज की अंतिम किरण तक गेम चलता और फिर सारे जांबाज थक कर घर जाते, कल के मैच के लिए तरोताज़ा होने के लिए.
गल्ली क्रिकेट, तुमने देश को अनेक क्रिकेट स्टार्स दिए हैं. साथ ही बहुत कुछ सिखाया भी है…कितनी भी मुश्किल हो ‘द गेम मस्ट गो ऑन.’ और यदि बॉल से खिड़की का शीशा टूट जाए, तो एक सेकंड के अन्दर हो जाओ गॉन!
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