प्यारे दिवाली के पकवान,
चाहे पेटू कह लो, पर मुझे मानने में कोई संकोच नहीं कि मुझे दिवाली का सबसे ज़्यादा इंतज़ार तुम्हारे कारण ही रहता था.
दिवाली के दस्तक देते ही घर की महिलाओं में अजब सा उत्साह दौड़ जाता था. क्या-क्या बनाना है इस पर गहरा विचार-मंथन. फ़िर पिताजी को मिलती किराने के सामान की एक लम्बी लिस्ट जिसे वे सारी तंगी-मंदी के बावजूद तुरंत अमली जामा पहना देते – दिवाली जो है भई! शाम को दफ्तर से लौटते वक़्त उनके हाथ में टिफ़िन के अलावा दो बड़े-बड़े झोले देखकर पता चल जाता कि अपनी दिवाली ट्रीट तो पक्की है.
और फिर अगले चंद दिनों तक रसोईघर दुनिया की सबसे ख़ास जगह बन जाता. चकली, शक्करपारे, गुझिया, सेंव, पपड़ी, चिवड़ा, लड्डू, मठरी, बेसन-चक्की…एक से बढ़कर एक पदार्थों की महक सारे घर में छा जाती.
‘ए! अभी नहीं खाना!’
इन हज़ार मीठी झिड़कियों के बावजूद, जितना बनता उसमें से आधा तो कढ़ाई से बाहर निकलते ही तुरंत पेट में पहुँच जाता. दिवाली से ठीक पहले प्लास्टिक के पारदर्शी डिब्बों में सारा ‘खाऊ’ करीने से सजा दिया जाता.
फिर आगामी कुछ दिन तो बस इसी खाऊ का एकछत्र राज रहता. नाश्ते में यही मिलता, मेहमानों को भी यही पेश किया जाता, आस-पड़ोस को बांटने में, काम करने वालों को ईनाम देने में भी यही काम आता. यहाँ तक कि दिवाली के बाद कई दिनों तक टिफ़िन में भी यही छाया रहता था. जितने चाव से अपना, उतने ही चाव से दूसरों का भी खाया जाता था.
कभी सोचा है दिवाली के पकवान इतने स्वादिष्ट क्यों लगते हैं? क्योंकि इनमें प्यार, दुलार और अपनापन घुला होता है. पर सबसे बड़ी बात…जब पूरा परिवार एक साथ बैठकर इनका मज़ा लेता है, तब रिश्तों का स्वाद इनमें उतर आता है.
तो दोस्तों दिवाली का त्यौहार फ़िर आने वाला है…पकवानों का जादू फ़िर छाने वाला है…कुछ दिन सारी कैलोरीज़-वेलोरीज़ भूल जाइए…जमकर खाइए-खिलाइए और दिवाली मनाइए.
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4 Comments
Very beautifully written Aarish bhai. Feeling hungry after reading Diwali post. Good Job! Keep the good work going. Reliving my childhood memories through your posts. Thanks
Thank Saurabh for encouraging words.
very well written Aarish sir. lovely.
Rohit Jhansiwale
Thanks rohit bro