लव नोट्स #2
घर से ऑफिस तक का रास्ता. और हमें लाती-ले जाती एक पुरानी सी बस. हम ३ नंबर स्टॉप से चढ़ते थे और वो ४ नंबर से. भीड़ में वो अलग ही नज़र आतीं. सोचती आँखें, सांवला-सलोना चेहरा, गरिमामय परिधान और मैचिंग एक्सेसरीज़.
उनके बस में चढ़ने के बाद अचानक उस खटारा बस में बिज़नेस क्लास का फीलिंग आने लगता था. न सड़कों के गड्ढे सताते, न कंधे पर सोता पड़ोसी, न गर्मी, न भीड़-भाड़, न कंडक्टर से छुट्टे की हुज्जत…जी करता ये सफ़र बस चलता ही जाए. बस में गूंजते गाने ऐसा लगता हमारे लिए ही बज रहे हों.
आस-पास के लोगों की गुस्से भरी नज़रों की परवाह न करते हुए, कई बार मैंने अपनी सीट भी उनको दी है. बदले में वो छोटा सा थैंक-यू दिल को बड़ी ख़ुशी दे जाता था. ये सिलसिला महीनों चलता रहा, फ़िर धीरे-धीरे बात बनने लगी. आँखों की इल्तजा आँखों तक पहुँचने लगी, उडती-उड़ती सी नज़र मुस्कान में बदलने लगी. साथ चढ़ने-उतरने वाले संगी-साथियों ने हौसला बढ़ाया तो बात आगे बढ़ाने की ठानी. एक शुभ दिन डिसाइड किया और बेसब्री से इंतज़ार करने लगे.
पर दफ़्तर वालों को प्यार से जाने क्या एलर्जी होती है. प्रपोज़ डे से बस एक दिन पहले मेरी शिफ्ट बदल गई! शिफ्ट बदल दी तो बस भी बदल गई, दिल की बात दिल में ही रह गई, हमारी लव स्टोरी शुरू होने से पहले ही दी एंड हो गई. फिर न वो आँखें थीं, न मैचिंग एक्सेसरीज़, न बिज़नेस क्लास की फीलिंग, न वो गीत, ज़िन्दगी तो बस अंग्रेज़ी वाला suffer बन कर रह गई.
उस दिन भी रोज़ की तरह उदास बैठा खिड़की के बाहर ताक रहा था, तभी बगल की सीट पर कोई आकर बैठ गया. देखा तो यकीन न हुआ, हाँ…वही तो थीं. मेरी आँखों का सवाल उन्होंने सुन लिया.
बोलीं, ‘एक्चुअली टाइम सूट नहीं हो रहा था तो मैंने भी ऑफिस का टाइम चेंज करा लिया.’
मैं मुस्कुरा दिया, वो भी मुस्कुरा दीं, बिना कुछ कहे-सुने ही प्याराना हो गया, जीवन का सफ़र दोस्तों, एक बार फ़िर से सुहाना हो गया!
हैप्पी वैलेंटाइन डे!
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