प्यारे बचपन के २६ जनवरी,
दिवाली, दशहरा जैसा ही ख़ास लगता है २६ जनवरी और १५ अगस्त का त्यौहार. कितनी ही जोश भरी यादें जुड़ी हुई हैं इनके साथ.
जनवरी का महीना शुरू होते ही स्कूल में २६ जनवरी की तैयारियाँ शुरू हो जाती थीं. अलग-अलग कक्षाएँ, अलग-अलग प्रस्तुतियाँ, दिन-रात अभ्यास, सबकी यही चाहत कि उनकी प्रस्तुति सबसे श्रेष्ठ हो. परेड, पी.टी., समूह गान, देशभक्ति गीतों पर नृत्य, भाषण…एक से बढ़कर कार्यक्रम तैयार किए जाते थे!
देखते-देखते २६ जनवरी का दिन आ पहुँचता था. मोहम्मद रफ़ी और महेंद्र कपूर की ख़ूबसूरत आवाज़ों से दिन की शुरुआत होती थी – है प्रीत जहाँ की रीत सदा, मेरे देश की धरती सोना उगले, ये देश है वीर जवानों का, जहाँ डाल-डाल पर सोने की चिड़िया….और इनके बीच कानों में रस घोलती थी लता जी की आवाज़ – ऐ मेरे वतन के लोगों के साथ.
सारी सुस्ती गायब हो जाती और हम पूरे जोश के साथ स्कूल के लिए तैयार हो जाते. साफ़ धुले और कड़क इस्त्री किए कपड़े पहनकर स्कूल जाने का अपना ही मजा होता था. साइकिल के हैंडल में फँसा वो छोटा सा तिरंगा हवा में फड़फड़ाते हुए हम स्कूल पहुँचते, जो किसी दुल्हन की तरह सजा हुआ लगता.
उस अद्भुत कार्यक्रम का पल-पल सबको याद होगा. वो एक पंक्ति में खड़ा होना, मुख्य अतिथि का इंतज़ार करना, बिगुल की आवाज़, कड़क परेड करते एनसीसी कैडेट्स के साथ उनका आना, तिरंगा फहराना, वो गिरती पंखुड़ियाँ, वो गर्व से उठते सर, जन-गन- मण, भारत माता की जय का नारा, जोशीले भाषण, पुरस्कार वितरण, कोई बच्चा गांधी बना है कोई सुभाष, फड़कते गीत और नृत्य…वो अहसास आज भी रोंगटे खड़े कर देता है न!
हम में से अनेक लोगों को एक और बात बड़ी याद आती होती होगी – कार्यक्रम के अंत में जो बूंदी का लड्डू मिला करता था. उसका स्वाद लगता है सीधे दिल में उतर गया है, इतने साल हो गए पर अब भी जुबां पर क़ायम है!
आज भी २६ जनवरी को उतनी ही सुबह उठता हूँ, मोहम्मद रफ़ी और लता जी की सच्ची आवाज़ों के साथ दिन शुरू करता हूँ, दूर कहीं से जन-गन- मण कानों में पड़ता है तो जहाँ भी हूँ, सावधान खड़ा हो जाता हूँ, और देश के प्रति अपने प्यार को फ़िर जी लेता हूँ!
२६ जनवरी अमर रहे…हमारे देश का गौरव अमर रहे…इसी कामना के साथ…जय हिन्द!
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