प्यारे 31st दिसंबर ,
आते तो तुम हर साल ही हो, पर न जाने क्यों ऐसा लगता है कि जितना इंतज़ार तुम्हारा इस साल किया है उतना पहले कभी नहीं किया। एक साल…कभी देखो तो पलक झपकते बीत जाता है, और कभी एक युग की सीख अपने एक – एक पल में दे जाता है।
तुमसे पिछली बार जब मिले थे, तब सभी की तरह मन में उत्साह लिए, घड़ी की टिक-टिक के साथ, 12 बजने का इंतज़ार हमने भी किया था। दोस्तों से गले मिलकर happy new year कहना, नाते-रिश्तेदारों को फ़ोन कर नए साल की बधाई देना, ये तय करना की पार्टी कहां मनाई जाए, इस बार घर पर ही रहे या कही बाहर जाकर धूम मचाय…आराम से सो रहे दोस्तों को आधी रात फ़ोन कर तंग करें या नयी सुबह बड़ो का आशीर्वाद लेने सीधे उनके घर पहुंच जाए… हम तो इन्हीं छोटी-छोटी उलझनों में फंसकर खुश थे…
तब ये अंदाज़ा ही नहीं था कि दोस्त के कंधे पर हाथ रखकर घंटो गली-नुक्कड़ पर बात करना भी नए साल में दूभर हो जायेगा। चाय कि टपड़ी पर, ‘छोटू, दो cutting देना ‘ कहने के लिए भी जी तरस जायेगा। मास्क के पीछे छिपा चेहरा जानते हुए भी अनजाना सा हो जायेगा, ऐसा तो कभी सोचा ही नहीं था
घर ही में स्कूल, स्कूल ही में ऑफिस, ऑफिस में ही cousin कि शादी, शादी में ही किराने के सामान कि खरीददारी इस खिचड़ी में हम एक – दो दिन नहीं पूरे साल रम जायेंगे ये भी कहां किसी ने सोचा था
होली, दिवाली, ईद, नवरात्रि अब तो सब त्यौहार भी हम zoom पर मनाना सीख गए है !
पर तुम्हारी बात कुछ और है…तुमसे तो उस समय से नाता है जब दूरदर्शन पर नए साल कि शाम का स्पेशल प्रोग्राम देखने के लिए साल में सिर्फ एक बार बचपन में माँ से आधी रात तक जागने का परमिशन मिलता था , जब दोस्त ठण्ड के बहाने कॉलेज आये न आये, नए साल का जश्न मनाने ज़रूर कड़ाके कि सर्दी में भी कही भी आने को तैयार रहते थे.
माना कि ये साल कुछ बिरला है, इस बार न जमघटों का शोर है ना हाथ थामकर रोमांटिक गानो में थिरकने का मज़ा. पर आये तो तुम इस साल भी हो वो ही उम्मीद कि किरण लेकर कि अगला साल कुछ यूँ होगा कि हम अपनों से मिलने व्हाट्सप्प वीडियो पर नहीं, सीधा उनके घर जायेंगे, जब सड़क पर चलते किसी को ठोकर लग जाये तो उन्हें सँभालते हुए ये नहीं सोचेंगे कि उन्हें छुए की न छुए. जब किसी के जाने का गम फ़ोन पर नहीं, अपना कन्धा देकर दिखा पाएंगे
तुम्हारे साथ इस मास्क से बढ़ती दूरियों को भी अलविदा कह सके, बस इसी इंतज़ार में हम सभी बैठे है….