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विवेक भावसार जी है Little Red Box के कू – छुक – छुक कांटेस्ट के winner. पेश है उनकी पुरस्कृत प्रविष्ठी,
वैसे तो रेल से सफ़र करने का मौका मुझे ज़्यादा नहीं मिला है, पर उसमें एक अनुभव जो मेरे साथ हुआ उसे मैं कभी नहीं भूल सकता.
बात दिसंबर १९८१ की है जब हम उम्र में ‘यंग’ थे. हमारा हमउम्र साथियों का (जिसमें मेरे कजिन और रिश्ते के और भी लोग शामिल थे) का ‘सफारी ग्रुप’ नाम का एक ग्रुप था जो आज भी है. इस ग्रुप के सदस्य कोई पर्यटन स्थल तय करके वर्ष में एक बार वहां साथ मिलकर घूमने के लिए जाया करते हैं.
हमारे ग्रुप के एक सदस्य उन दिनों लोनावाला में एक इंडस्ट्री में इंजीनियर के पद पर कार्यरत थे और वहीं रहते थे. उनके आग्रह पर उस वर्ष मुंबई के निकट एक छोटे से हिल स्टेशन माथेरान के साथ लोनावला में ३ दिन घूमने का कार्यक्रम बनाया. सारे लोगों को लोनावला में एकत्रित होकर अलसुबह मुंबई जाने वाली एक ट्रेन से कर्जत तक जाना था, वहां से लोकल ट्रेन से नेरल पहुंचकर माथेरान के लिए मिनी ट्रेन उपलब्ध थी, जिस पर सवा होकर हम माथेरान जाने वाले थे.
प्लान के अनुसार सभी ६ सदस्य एक दिन पहले ही शाम तक लोनावला एकत्रित हो गए. रात लोनावला में विश्राम कर सुबह मुँह-अँधेरे कर्जत के लिए ५ बजे वाली महालक्ष्मी एक्सप्रेस पकड़ने के लिए हम स्टेशन पर किसी तरह भागते दौड़ते पहुंचे. सामने ही ट्रेन प्लेटफार्म पर तैयार खड़ी थी. टिकट खिड़की से हड़बड़ी में टिकट खरीदकर हम ट्रेन में चढ़ने लगे. इतनी देर में ट्रेन धीरे धीरे चल पड़ी. सभी लोग दौड़ते हुए ट्रेन में चढ़ गए और शुक्र मनाया कि ट्रेन पकड़ पाए वर्ना आज का पूरा प्लान गड़बड़ हो जाता. पर हमें क्या पता था कि प्लान आलरेडी फेल हो चुका था.
यात्रियों से पता चला कि जिस ट्रेन में हम सवार हुए थे वो महालक्ष्मी एक्सप्रेस नहीं वरन मीनार एक्सप्रेस थी जो कर्जत नहीं रूकती थी और अगला स्टॉप सीधे दादर था. अब तो सबके होश उड़ गए. उस दिन मीनार एक्सप्रेस अपने नियत समय से कुछ देर से चल रही थी और हम जिस पैसेंजर ट्रेन में बैठना चाहते थे वह इसके बाद स्टेशन पर आने वाली थी.
तभी किसी ने सलाह दी की कर्जत स्टेशन पर ट्रेन की गति थोड़ी धीमी हो जाती है, उस समय उतर सको तो उतर जाना. खैर, कर्जत स्टेशन की राह देखी जाने लगी. कुछ देर बाद ही कर्जत स्टेशन आने को था. हम सभी बोगी के दरवाज़े पर तैयार खड़े थे कि जैसे ही ट्रेन धीमी हो और हम कूद जायें. लेकिन स्टेशन निकल गया और ट्रेन भी इतनी धीमी नहीं हुई की हम कूद पाएँ. मतलब अलग स्टेशन दादर. प्लान फेल. कब दादर पहुंचेंगे कब वापसी की ट्रेन पकड़ेंगे. हम सब मायूस हो गए थे, पर हमें कहाँ पता था कि इस मायूसी के पीछे छिपा एक एडवेंचर आज दिन भर हमारे साथ होगा.
सुबह ८ बजे हम दादर स्टेशन पहुंचे. टिकट होते हुए भी हम बिना टिकट जैसे ही थे. प्लेटफार्म के दूसरी तरफ उतरकर बीच की जाली फांदकर हम लोकल स्टेशन के प्लेटफार्म पर एक आड़ में जाकर खड़े हो गए कि किसी टीसी की नज़र में ना आ जाएं. मुंबई के किसी भी स्टेशन पर टीसीज की नज़र बड़ी तेज़ होती है. तय हुआ कि हम में से कोई एक चुपके से स्टेशन के बाहर जाकर वापसी की टिकट खरीदे और वापस नेरल जाने वाली ट्रेन में बैठा जाए. किसी तरह टीसी की नज़र बचाकर हम टिकट ला पाने में सफल हो पाए.
वापसी की ट्रेन पकड़कर जब हम नेरल पहुंचे तब दोपहर हो चुकी थी और माथेरान जाने वाली मिनी ट्रेन तो कभी की रवाना हो चुकी थी और अगली ट्रेन शाम ५ बजे थी. अब क्या किया जाए सोचते हुए हम स्टेशन के बाहर आ गए, सोचा पहले पेट पूजा करें फिर काम दूजा करें, सोचेंगे आगे क्या करना है. बाहर किसी होटल में खाना खाते हुए जानकारी मिली कि माथेरान जाने के लिए पक्का रास्ता है जिससे किसी वाहन में बैठकर जाया जा सकता है लेकिन पैदल जाने के हिसाब से काफी लम्बा है.
पैदल जाना हो तो जंगल के बीच चलते हुए पहाड़ चढ़ते जाओ, दो घंटे में पहुँच जाओगे. जवान खून था, हमने तय किया की पैदल जाएंगे क्रॉस कंट्री ट्रैकिंग करते हुए. फिर हम चल पड़े जंगलों के बीच माथेरान के लिए. रास्ते में प्रकृति के सान्निध्य में, कभी धूप, कभी छाँव, कंटीली झाड़ियाँ, पथरीली चढ़ाई, पसीने से तरबतर होते तो कभी पहाड़ों से गिरते झरनों में नहाते, पूरा आनंद लेते हुए शाम ढलने से पहले थक कर चूर हम आखिर माथेरान पहुँच ही गए.
ये छोटी सी दुर्घटना, रेल का सफ़र और एडवेंचर से भरी ट्रैकिंग हमारे पूरे ग्रुप के लिए यादगार सफ़र बन गया जिसे हम आज भी मिलने पर, याद किए बगैर नहीं रहते.
पढ़िए कू – छुक – छुक कांटेस्ट की दुसरी विजेता चिट्ठी My Rail To Bilaspur
Images courtesy,
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2 Comments
Vivek ji, yeh toh sachmuch mazedaar ‘relanubhav’ bata aapne! Badhai!
Sahi kaha. Yeh safar wakai bahut yaadgar raha. Vivek ji thank you, ham sab ke saath ise baatne ke liye. 🙂